सनातन बचा रहा तो विश्व की सभ्यता भी बची रहेगी -पूर्व संभागायुक्त डॉ. मोहन गुप्त
परिवारों में बिखराव का कारण प्रेम, विश्वास, सम्मान और समय की कमी
“जीवन शाला” में वरिष्ठ जन सम्मान एवं संवाद कार्यक्रम आयोजित
उज्जैन 29 सितम्बर. विश्व को परिवार की अवधारणा देने का कार्य भारत द्वारा किया गया. हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि समाज तब तक जीवित रह सकता है जब तक की परिवार जीवित रहेगा। जहां-जहां परिवार विघटित हो रहे हैं वहां का समाज नष्ट हो रहा है.आज के संदर्भ में सारे विश्व की निगाह भारत पर टिकी है.विश्व सभ्यता संकट से गुजर रही है. सनातन बचा रहा तो विश्व की सभ्यता बची रहेगी.यहां के वरिष्ठ नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वे परिवार को पतन से बचाए. पुत्र पौत्र यदि अनाचार करते हैं, तो उनको रोके और इसके लिए स्वयं आदर्श प्रस्तुत करें.आज भौतिक दूरी कोई मायने नहीं रखी है, इसलिए कुटुंब को एक साथ मिलकर वर्ष में एक बार कम से कम साथ बैठना चाहिए. इससे परिवार सूत्र में बंधा रहता है.
यह बात पूर्व संभाग आयुक्त एवं पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने आज अपने जन्म दिवस पर आयोजित वरिष्ठजन सम्मान एवं संवाद समारोह में संबोधित करते हुए कही. समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. बाल कृष्ण शर्मा तथा अध्यक्षता डॉ. केदार नारायण जोशी द्वारा की गई.
जीवन उद्घोष संस्था के तत्वावधान में “जीवन शाला” कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें वरिष्ठजन सम्मान एवं संवाद हुआ। कार्यक्रम में वरिष्ठ जनों का सम्मान उनके बच्चों द्वारा किया गया और वरिष्ठ जनों द्वारा उन्हें मार्गदर्शन और आशीर्वाद दिया गया। संवाद के अंर्तगत “बदलते परिवेश में हमारी पारिवारिक
व्यवस्था के समक्ष चुनौतियां और समाधान” विषय पर विद्वतजनों ने अपने विचार रखे।
संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश व्यास ने बताया कि जीवन उद्घोष संस्था पिछले 10 वर्षों से डॉ मोहन गुप्त के जन्म दिवस पर निरंतर वरिष्ठ जन सम्मान एवं संवाद आयोजित करती आ रही है। कार्यक्रम में वरिष्ठ जनों का सम्मान उनके बच्चों द्वारा किया जाता है। कार्यक्रम में उज्जैन के विद्वतजन शामिल होते हैं और हमें उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनका ज्ञान और जीवन संदेश नई पीढ़ी के लिए अत्यंत उपयोगी है। आज हमारे परिवारों में निरंतर बिखराव होता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण परिवार के चार प्रमुख तत्व प्रेम, विश्वास, सम्मान और समय की कमी है। परिवारों में एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान तो रहता है परंतु वह छुपा रहता है। उसे बाहर निकलना आवश्यक है। इस तरह के आयोजन उसे बाहर निकालने का काम करते हैं। हमारी संस्था प्रेम, विश्वास, समय और सम्मान के इस संदेश को ” जीवन शाला” के मध्यम से नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य करती है।
“जीवनशाला” में वरिष्ठजनों का उनके स्वयं के परिवार से सम्मान करवा कर परिवार में समरसता कायम करने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया गया. जिन वरिष्ठ जनों का सम्मान किया गया उनमें श्री सुभाष व्यास, सुश्री करुणा त्रिवेदी, श्री नारायण उपाध्याय, श्री बीके शर्मा, डॉ. संतोष पंडिया, श्री जीवन प्रकाश आर्य, श्री शशि मोहन श्रीवास्तव तथा श्री केदारनाथ जोशी शामिल है. कार्यक्रम में श्रीमती वैजयंती गुप्ता विशिष्ट सम्मान सेवा भारती बालिका छात्रावास की सुश्री प्रीति तैलंग को दिया गया, जिसमें सम्मान पत्र तथा रू 11000 की सम्मान राशि भेंट की गई.
“बदलते परिवेश में हमारी पारिवारिक
व्यवस्था के समक्ष चुनौतियां और समाधान” विषय पर विद्वतजनों ने अपने विचार रखे। डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि परिवार विघटन की समस्या को परिवार के बुजुर्गों को मिलकर ही दूर करना होगी.बुजुर्गों को समय के साथ बदलना होगा परिवार के साथ नितांत औपचारिक संबंध नहीं रहना चाहिए.
डॉ केदार नारायण जोशी ने कहा कि समाज में गरिमा और मर्यादा की कमी है. बड़े लोग अपना बड़प्पन खोते जा रहे हैं. अहंकार के कारण समाज़ की स्थिति खराब हो गई है. संयुक्त परिवार विलुप्त हो गए हैं, परिवार का विभाजन विनाशकारी सिद्ध हो रहा है.
डॉ. संतोष पंड्या ने कहा कि पारिवारिक संबंधों पर संकट आ रहे हैं. इस सिलसिले में उन्होंने दो पुत्रों की मां की व्यथा के बारे में छोटी सी कहानी सुनाई तथा कहा कि मुख्य रूप से परिवार के मूल्यों में आ रही गिरावट पर विचार किया जाना चाहिए. डॉ केदारनाथ शुक्ला ने कहा कि घरों में अग्नि का विभाजन दुखद है. परिवारो में शास्त्रों का अध्ययन कर मर्यादा की पुनर्स्थापना की जाना चाहिए. डॉ. बी.के. शर्मा ने कहा कि संवादहीनता का मतलब है कि जिस तरह से बात होना चाहिए सम्मान होना चाहिए वह नहीं हो रहा है.स्नेह व प्रेम का अभाव है. एक ही घर में दो लोग अलग-अलग बैठकर मोबइल चलाते हैं, बात नहीं करते. इसके समाधान की आवश्यकता है. टेक्नोलॉजी वरदान है, तो यह अभिशाप भी है. श्री नारायण उपाध्याय ने कहा कि समाज को नई पीढ़ी को सुसंस्कृत करना होगा. बच्चों को एकत्रित कर बुजुर्गों का सम्मान करने और अपनी परंपरा की जानकारी देना अनिवार्य है.
डॉ शिव चौरसिया ने कहा कि पहले ढाई कमरों के मकान में रहकर भी अतिथियों का आत्मीयता के साथ सम्मान होता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में परिवेश बदल गया है. पहले दूर रहकर भी दिल से सब लोग एक हुआ करते थे, आज पास में रहकर दिलों में दूरी आ गई है यह दुखद है. डॉ. शशि मोहन श्रीवास्तव ने कहा कि पारिवारिक विघटन आज की समस्या है. समाज को सुधारने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य करना पड़ेगा. डॉ.हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि समाज को बचाने में सबको साथ आना होगा.
श्री प्रकाश व्यास एवं श्री पंकज मित्तल ने अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया तथा वरिष्ठ नागरिकों को शॉल एवं श्री फल से सम्मानित किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ पिलकेंद्र अरोरा ने किया एवं आभार श्री उपेंद्र शरण गुप्ता ने प्रकट किया. कार्यक्रम में डॉ विमल गर्ग, श्री हरि शंकर शर्मा, श्री शिवकुमार दुबे, श्री अप्रतुल शुक्ला, श्री राधे श्याम शर्मा, श्री विवेक चौरसिया आदि मौजूद थे.