उभरते वायरस: महामारी और जैव सुरक्षा परिप्रेक्ष्य” शीर्षक के साथ आयोजित रहे “वायरोकॉन-2024 शुभारम्भ..

डीआरडीई ग्वालियर में दौरान वायरोकॉन 2024 (Virocon 2024) अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डी.आर.डी.ई.) ग्वालियर में . 11 से 13 नवंबर 2024 के दौरान आयोजित होने जा रहे इंडियन वायरोलॉजिकल सोसाइटी (आई.वी.एस.) के वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन वायरोकॉन 2024 (Virocon 2024) नामक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ 11 नवंबर 2024 को तानसेन मार्ग स्थित परिसर में हुआ।
इस सम्मेलन में देश-विदेश के 400 से अधिक वैज्ञानिक, शोधकर्ता, शोधार्थी एवं आई.वी.एस. के सदस्य शामिल हुए हैं।
“उभरते वायरस: महामारी और जैव सुरक्षा परिप्रेक्ष्य” शीर्षक के साथ आयोजित रहे “वायरोकॉन-2024” के उद्घाटन समारोह में डॉ. अरविंद शुक्ला, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल थे। इसके अतिरिक्त मंच पर डी.आर.डी.ई. के निदेशक डॉ. मनमोहन परीडा, प्रो. आर. के. रथो, अध्यक्ष आई.वी.एस., डॉ.यशपाल मलिक, महासचिव आई.वी.एस. एवं आयोजन सचिव डॉ. पी. के. दाश मौजूद थे। अपने उद्घाटन भाषण में डॉ. मनमोहन परीडा ने डी.आर.डी.ई. की अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों का परिचय देते हुए विगत कुछ वर्षों में विकसित किए गए उत्पाद एवं प्रौद्योगिकियों की जानकारी दी।

डॉ.यशपाल मलिक, महासचिव आई.वी.एस. ने अपने व्याख्यान में कहा कि ऐसा पहली बार है जब आई.वी.एस. सम्मेलन का आयोजन डी.आर.डी.ओ. की किसी प्रयोगशाला में हो रहा है और यह संभवत: अब तक का सर्वश्रेष्ठ आयोजन है। उन्होंने यह भी बताया कि विषाणु (वायरस) और जीवाणु (बैक्टीरिया) हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न हिस्सा है एवं उनके अस्तित्व मानव जाति के पूर्व से है। वायरस भी अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अपने आप में निरंतर परिवर्तन करता रहता है। अत: मनुष्य को उनकी पहचान करते हुए उनके विपरीत प्रभावों से बचाये रखने की चुनौती है।

प्रो. आर. के. रथो, अध्यक्ष आई.वी.एस. ने अपने संबोधन में कोविड महामारी का जिक्र करते हुए विषाणु विज्ञान के क्षेत्र में आई.वी.एस. के योगदान का परिचय दिया। साथ ही उन्होंने निपाह और मंकी पॉक्स की चुनौतियों पर भी बात की।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. अरविंद शुक्ला, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर ने कहा कि पहले ऐसा माना जाता था कि निम्न और मध्यम आय वर्ग के देश उच्च आय वर्ग वाले विकसित देशों की तुलना में महामारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। कोविड महामारी ने इस धारणा को तोड़ा है और यह देखा गया कि इस महामारी में विकसित देशों की आबादी को ज्यादा प्रभावित किया। इससे यह साबित होता है कि भविष्य में महामारियों से निपटने के लिए पोषण, सभ्यता और प्रकृति से सामंजस्यपूर्ण जीवनशैली आवश्यक होगी। उन्होंने यह भी कहा कि पोषक खाद्यान्न उत्पादन में मृदा की गुणवत्ता आवश्यक है। एक कृषि वैज्ञानिक होने के नाते उन्होंने सुझाव दिया कि विषाणु विज्ञान की अनेक शाखाओं को मृदा विज्ञान के साथ भी परस्पर शोध में शामिल होना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी चुनौतियों का प्रभावी तरीके से सामना किया जा सके।

उद्घाटन सत्र में देशभर में विषाणु विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले अनुसंधानकर्ताओं को विभिन्न आई.वी.एस. पुरस्कार भी प्रदान किए गए। डी.आर.डी.ई. के सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. ए. एम. जाना को विषाणु विज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

उद्घाटन सत्र में धन्यवाद प्रस्ताव सम्मेलन के आयोजन सचिव डॉ. पी. के. दास ने दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. एस. आई. आलम ने किया।

सम्मेलन के पहले दिन कुल 82 वैज्ञानिक एवं तकनीकी पोस्टर प्रदर्शित किए गए एवं कल कुल 87 पोस्टर प्रदर्शित किए जायेंगे। विषाणु विज्ञान की 06 विषय श्रेणियों में सर्वश्रेष्ठ पोस्टर पुरस्कार भी प्रदान किए जायेंगे, जिनका निर्धारण विशेष रूप से गठित मूल्यांकन समिति द्वारा किया जायेगा।

उद्घाटन सत्र के अलावा आज कुल 13 वैज्ञानिक व्याख्यान हुए। ये व्याख्यान 04 अलग-अलग सभागारों में समानांतर सत्रों में आयोजित हुए। सम्मेलन में फ्रांस, अमेरिका, रूस, कनाडा सिंगापुर आदि देशों के भी वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता शामिल हुए।

सम्मेलन के दौरान बड़े पैमाने पर शोधपत्र प्रस्तुतियां एवं पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित की गयी, जिससे विषाणुविज्ञान के क्षेत्र में कार्य कर रहे शोधकर्ताओं को परस्पर विचार-विमर्श का अनूठा अवसर प्राप्त हुआ।

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Post Author: Javed Khan