आपातकाल का मतलब केवल इंदिरा गांधी के शासनकाल में लगने वाला आपातकाल ही नहीं होता .कोविडकाल भी किसी आपातकाल से कम नहीं है. इंदिरा गांधी के आपातकाल में जो नहीं हो पाया था वो सब इस कोविडकाल के आपातकाल में हो गया और होता जा रहा है .इस अघोषित आपातकाल के ग्यारह महीने पूरे होने वाले हैं .
हमारी पीढ़ी इंदिरागांधी के आपातकाल की गवाह है ,उसे पता है कि उस दौरान कितने लोगों को 19 माह जेल में रहना पड़ा.कितने नागरिक अधिकार स्थगित किये गए,इतनों की जबरन नसबन्दियाँ की गयीं,कितनों के ऊपर बुलडोजर चले आदि-आदि .लेकिन इस नए आपातकाल में पूरे देश को महीनों लाकडाउन में अपने घरों में नजर बंद रहना पड़ा. पुराने आपातकाल में सब कुछ समय से चलने लगा था ,इस आपातकाल में सब कुछ स्थगित हो गया .कोरोना न फाइल इस लिए पूरे देश को तालाबंद कर दिया गया .रेलें बंद,बसें बंद ,हवाई जहाज बंद ,जो जहाँ है वहीं रहे .
इस कोविद आपातकाल में स्कूल बंद ,बाजार बंद ,बाजार बंद ,अस्पताल बंद ,यानी कुछ खुला ही नहीं और जो खुला वो पिटा,मारा गया ,बेरोजगार हो गया,भुखमरी का शिकार हो गया .कोरोना के आपातकाल में सरकार परम स्वतंत्र थी.देश में पहली बार अदालतें और निर्वाचित सदनों में ताले लगाए गए .यानि बिना किसी अध्यादेश के तमाम नागरिक सुवधाएं और नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए गए,न कहीं अपील और न दलील .सब अपने-अपने घरों में कैद रहे .खुद प्रधानमंत्री तक अपवाद नहीं बने वे भी कैद थे अपने सरकारी आवास में .
इस आपदाकाल में धीरज,धर्म,मित्र और नारी चारों की परख हो गयी .आपातकाल ही इन चारों को परखने का सही समय माना जाता है .जनता ने धीरज दिखाया,नागरिक धर्म का मुस्तैदी से सर झुकाकर पालन किया ,मित्रों ने एक -दूसरे की मदद की या नहीं की ,सब पता चल गया और घर वाली के लिए तो ये अग्निपरीक्षा का समय था ही .बिना दवाई के लोग इस आपदा से जूझे .आज जब कोरोना का टीका बनकर आ गया है तब भी अवाम धीरज का परिचय दे रहा है .जनता ने टीके के परीक्षण से लेकर उपयोग तक में अपने आपको प्रस्तुत किया जबकि गाल बजाने वाला नेता समुदाय दूर खड़ा हो गया. दूसरे देशों के राष्ट्र प्रमुखों की तरह हमारे यहां न प्रधानमंत्री ने टीका लगवाया और न किसी पार्षद ने .मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री का तो टीका लगवाने का सवाल ही नहीं उठता .
संतोष की बात ये है की देश में पहले दिन जिन दो लाख लोगों ने स्वदेशी टीके लगवाए उनमने से अपवाद को छोड़कर किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई .इस टीके के प्रभाव का सही पाता दूसरे डोज के इस्तेमाल के बाअद लगेगा .आप उम्मीद कर सकते हैं की इस ठीके के इस्तेमाल के बाद आप कोविड आपातकाल से मुक्ति पा सकेंगे. आने वाले दिनों में सरकार के पास कोविड की ढाल का बेजा इस्तेमाल करने का कोई बहाना नहीं रहेगा ,कोविड को ढाल बनाकर अभी तक सरकार वो सब करती आ रही है जो उसे नहीं करना चाहिए .
संक्रमण का ये अघोषित आपातकाल हटे तो रेलें समय से चलें,पूरी क्षमता से चलें,रोजगार बहाल हों,पर्यटन बढ़े,अर्थव्यवस्था पटरी पर आये .खुशहाली लौटे,स्कूल-कालेज खुलें ,लोग घर बैठाकर काम करने के बजाय अपने-अपने दफ्तरों और कारखानों में जाकर निडर होकर काम कर सकें .धीरज,धर्म,मित्र और नारी की परख में ये चारों उत्तीर्ण साबित हुए,यदि कोई नाकाम हुआ तो वो थी सरकार ,लेकिन सरकार को किसी ने कसौटी पर कसने की हिमाकत की ही नहीं .कोविडकाल में केवल सरकारें थीं जो बनती और बिगड़ती रहीं ,यानि सियासत सब प्रतिबंधों से मुक्त रही और आज भी है. आज भी कोविड के तमाम प्रोटोकाल का उलंघ्घन करने केवल और केवल सियासत ने किया है .
इस आपदाकाल में सारे अवैध धंधे बेरोकटोक चले,अवैध शराब बिकी,लोग मारे गए ,परेशान किसान सड़कों पर उतरे लेकिन सवा माह बाद भी उनकी कोई सुनवाई नहीं की गयी किसान आज भी सड़कों पर हैं ,लेकिन संवेदनशील सरकार दस बैठकों के बाद भी कोई फैसला नहीं कर पाई है किसानों को देश की सबसे बड़ी अदालत से उलझने की कोशिश की जा रही है ,लेकिन इस कोशिश को भी कामयाबी हासिल होती दिखाई नहीं दे रही .
कुल जमा आप इस कोविडकाल को देश के एक दूसरे बड़े दुःस्वप्न की तरह याद करने के लिए विवश किये जा रहे हैं .पहला दुःस्वप्न इंदिरा गांधी के समय का आपातकाल था और दूसरा दुःस्वप्न आज का कोविडकाल है आगामी 1 फरवरी को देश का आम बजट 2021 पेश किया जाएगा. आम बजट के दिन आम हो या खास हर शख्स की निगाहें रेल बजट पर होती हैं. हालांकि इस बार रेल बजट का इंतराज कर रहे लोगों को निराशा हाथ लग सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि, कहा ये जा रहा है कि बजट 2021 में रेलवे के लिए कोई बड़ी सौगात नहीं होगी. सूत्रों का कहना है कि रेलवे का बजट पिछले वित्त वर्ष से करीब 3-5% ही बढ़ सकता है.
खबर है कि रेल मंत्रालय ने अगले वित्त वर्ष के लिए वित्त मंत्रालय के सामने करीब 1.80 लाख करोड़ के बजट की रूपरेखा रखी है. सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कोरोना वायरस महामारी का हवाला देते हुए, इस बड़ी मांग को पूरी कर पाने में असमर्थता जताई है. ऐसे में ये साफ हो गया है कि रेल यात्रियों को इस बजट से ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए. यानि जनता के धीरज की ,किसानों के धीरज की अभी और न जाने कितनी अग्निपरीक्षाएँ बाक़ी हैं ,क्योंकि कोविडकाल की समाप्ति के अभी कोई आसार नहीं है.इसे लंबा खींचा जा सकता है ये न तो हमें पता है और न आपको.जिन्हें पता है वे बोलने के लिए राजी नहीं हैं.मुझे लगता है कि जो देश इंदिरा गांधी के आपातकाल को झेल सकता है तो उसे इस नए आपातकाल का सामना करने में कोई परेशानी नहीं आएगी .जनता का धैर्य प्रणम्य है .
@ राकेश अचल