इतना सन्नाटा और खामोशी क्यों है भाई ..? ..इस बार ग्वालियर लोक सभा सीट पर राजनीतिक रंग चढ़ा हुआ दिखाई क्यों नहीं दे रहा है ..?

इस बार ग्वालियर लोक सभा सीट पर राजनीतिक रंग चढ़ा हुआ दिखाई क्यों नहीं दे रहा है ..?

आम मतदाता खामोश होने की मुद्रा में है तो चुनाव के अंतिम दौर में होते-होते चुनाव के एक दिन पहले और प्रचार प्रसार करने के बाद से बीजेपी के प्रत्याशी भरत सिंह कुशवाहा सहित कांग्रेस के प्रत्याशी प्रवीण पाठक और वोटों में सेंधमानी करने के लिए आए बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी कल्याण सिंह कंसाना भी कुछ थके थके हुए अंदाज में नजर आ रहे हैं।

इस पूरी कार्य प्रणाली के पीछे मतदाता की खामोशी एक सबसे बड़ा डर और संकट दिखाई दे रहा है ।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शायद इस बार के चुनाव में कोई भी प्रत्याशी अपने आप को खुद सेल्फ सेटिस्फेक्शन नहीं दे पाया होगा ..और सब की हसरत होगी के उन्होंने इस बार कुछ कम मेहनत की.. लेकिन अब भाग्य मतदाता यानी वोटर के हाथ में है..

और जब वह ईवीएम मशीन पर बटन दबाएगा तो उसके साथ ही प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला हो जाएगा… लेकिन मतदाता की खामोशी, गंभीर मुद्दों की कमी ,ठोस प्लानिंग की बजाय आरोप प्रत्यारोप जैसा चुनाव शायद अभी तक नहीं हुआ ..

और यही वजह है प्रत्याशियों के मन में खलबली का वोटिंग का परसेंटेज भी निर्भर करेगा कि आखिर भाग्य विधाता कौन बनेगा? लेकिन तब तक वोटर की खामोशी जब मशीन में कैद हो जाएगी और 4 जून को परिणाम आएगा तो शायद नतीजे कुछ चौंकाने वाले हो सकते हैं।

अंतिम समय में उनकी जोर आजमाइश होनी चाहिए थी ।लेकिन वैसी जोर आजमाइश दिखाई नहीं दी। आखिर इस खामोशी और उदासीनता के पीछे मतदाता की खामोशी एक बड़ा कारण माना जा रहा है ।बताया जाता है कि जातिगत आधार पर साधने की कोशिश तो तीनों प्रत्याशियों ने की ।

लेकिन शायद सफलता किसी को भी नहीं मिली

अब मतदाता ही भाग्य विधाता है।..इसलिए सब की धुकधुकी लगी है वोटिंग का परसेंटेज कितना रहता ।है इस पर भी प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला निर्भर करेगा। लोकसभा में कौन कितने अंतर से पहुंचेगा.. यह तो 4 जून को ही पता चल सकेगा ..लेकिन इस बार का चुनाव कुछ धीमा और कुछ मंदा चलता हुआ दिखा..इसलिए राजनीतिक कलर चढ़ने में पूरी तरह से मजेदारी एक नहीं रही और शायद प्रत्याशी भी संतुष्ट नहीं होंगे अपनी वर्किंग और अपनी कार्य प्रणाली से।

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Post Author: Javed Khan