Gwalior–यहां न कोई “गुब्बारा” है और न कोई “फाटक”

इसलिए कहते हैं “गुब्बारा फाटक”

यहां न कोई “गुब्बारा” है और न कोई”फाटक”

लेकिन………………..

150 साल पहले रियासत काल में या यूं कहें कि शिंदे शाही के जमाने में यहां बेलून बनाने वाले और चमड़े का थैला बनाने वालों की बसाहट हुआ करती थी…. इसलिए इस इलाके को गुब्बारा फाटक कहते हैं

मैथिली शरण गुप्त की प्रतिमा यहां 25साल पहले लगी अब इसे मैथिली शरण गुप्त चौराहा भी कहते हैं… यहां से इक रास्ता खुर्जे वाला मोहल्ला और दूसरा दौलत गंज तीसरा लोहिया बाज़ार चौथा रास्ता कंपू जाता है

1878 में बना 125 साल पुराना हनुमान जी मंदिर…………..यहां पर महाराष्ट्रीयन समाज का एक हनुमान मंदिर भी है , जिस पर महारुद्र प्रसादिक समाज लिखा है, इस मंदिर के आसपास के 500 मीटर इलाके में मराठा समाज के कई छोटे और बड़े बाड़े हैं….

 

साभार–courtesey- मित्र– इंद्रदेव सिंह की पोस्ट से…

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Post Author: Javed Khan