सरकारी मुल्लमे से हटकर गतिविधियां संचालन करने की जरूरत ..आनंददम विभाग को ..
राज्य आनंद संस्थान की गतिविधियां शून्य की ओर..
ग्वालियर .मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार के समय में शुरू हुए मध्यप्रदेश के आध्यात्मिक विभाग के अंतर्गत राज्य आनंद संस्थान का गठन किया गया था ।लेकिन यह राज्य आनंद संस्थान अब लगभग गतिविधियों विहीन हो गया है ..और प्रदेश में नागरिकों को आनंद की अनुभूति व अपने आंतरिक व बाह्य आनंद को समझने के लिए अनेक कार्यक्रम जैसे अल्प विराम, आनंद उत्सव ,आनंद सभा, नेकी की दीवार आनंदम एवं आनंद क्लब आदि संचालित करने का दावा भी किया जा रहा है ।
लेकिन इस तरह के अभियानों में अब कमी दिखाई दे रही है ।मध्य प्रदेश स्तर के अलावा ग्वालियर चंबल अंचल में भी आनंद विभाग की गतिविधियां लगभग शून्य सी हो गई हैं। आनंद विभाग के कर्ताधर्ता भोपाल में जाकर अपने स्तर पर खुद को स्थापित करने में तो लगे हैं। लेकिन आनंदकों की गतिविधियों पर अब किसी का ध्यान नहीं है।
वर्तमान में राज्य आनंद संस्थान के साथ लगभग 50,000 आनंदक पूरे प्रदेश से पंजीकृत हैं ।जो अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ और समाजसेवी व बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हैं।
पिछले दिनों आनंद विभाग का 1 सम्मेलन भोपाल मैं आयोजित किया गया ।लेकिन आनंद विभाग के आनन्दको की उस परिसर में उपस्थिति ना के बराबर खलती रही ।
आनंदक खाली कुर्सियों के बीच बैठे प्रतिभागियों को हैप्पीनेस के टिप्स देते रहे ।कार्यक्रम का आयोजन समन्वय भवन भोपाल में किया गया था ।
इसी तरह जिला स्तर पर ग्वालियर जिले में भी आनंद विभाग के सम्मेलन पूर्व में तो हुए हैं। लेकिन अब आनंद सम्मेलन और आनंदको के पंजीयन की गतिविधियां में लगभग इसी योजना के साथ जैसे दम तोड़ती नजर आ रही हैं। यहां के आनंद प्रभारी अब कार्यक्रमों में रूचि लेते दिखाई नहीं देते
..इसी तरह वर्तमान में पदस्थ अधिकारियों को भी जैसे अब एक यह कार्यक्रम सरकारी आयोजन लगने लगा है..
और जो पूर्व के अधिकारी दिल से इस आयोजन की जिम्मेदारी लेते थे ..अब ऐसी गतिविधियां दिखाई नहीं दे रही हैं ..जबकि आनंद विभाग के अल्पविराम जैसे कार्यक्रम बड़े रुचिकर होते थे ।इसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि स्वयं के मन में अंतर्मन में झाँकने का सबसे अच्छा तरीका है ।
इसके माध्यम से ईर्ष्या, कड़वाहट, मन के भीतर के भाव को निकालने का बेहतरीन तरीका समझाया जा सकता है… विशेषज्ञों का कहना है कि हम बाहरी सुन्दरता ,उसके पीछे से तभी मुक्त हो सकेंगे,, अंतर्मन की कड़वाहट को बाहर निकालकर पहले से ही चढ़े कुण्ठा के चश्मे को हटाना होगा ।इससे हमें अक्सर दूसरों के भीतर कमी दिखाई देती हैं।।
जरूरत है आनंद विभाग को एक सरकारी मुलम्मा न बनाते हुए जन-जन से जुड़ने की,, ताकि लोगों के जीवन में खुशियां बांटी जा सकें,, ना कि सरकारी स्तर पर इसके संचालन की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार पर सोंप दी जाए . बाकी समाज के अगुआ और समाजसेवी सिर्फ सरकार के भरोसे बैठे रहकर इस अभियान को गति नहीं दे सकते…
आखिर ये आनंद की बात है ..