“हां साहेब !! मैं सरकार का चारा हूँ। नियमों से बंधा मध्यमवर्ग बेचारा हूँ।।”

“हां साहेब !! मैं सरकार का चारा हूँ।
नियमों से बंधा मध्यमवर्ग बेचारा हूँ।।”

आज़ादी के बाद से ही हिंदुस्तान की तमाम सरकारों ने सामाजिक न्याय की व्यवस्था में दो वर्गों को अपनी आंखों का तारा बनाकर बड़ा किया हैं। हर सरकार की पहली पसंद रहा हैं… निम्न आय वर्ग और दूसरी पसंद में उच्च आय वर्ग !! ग़रीब और ग़रीबी हमारी लोकतांत्रिक सरकारों की नज़र में शाश्वत सत्य की भांति चुनावी जीत की पूंजी की शक्ल में स्थापित हैं।

जबकि उच्च आय वर्ग लोकतंत्र की वह रीढ़ है, जो सरकारों के आर्थिक सरोकारों की पूर्ति करता हैं। मज़े की बात तो ये है कि पूंजीवाद की पोषक सरकारें.. उच्च आयवर्ग की तिजोरी पहले गले तक भरने के तमाम जतन करती हैं… और उसमें से जितना माल निकालती है..उससे दोगुना माल भरने की पहले ही सौ फीसदी गारंटी भी देती हैं.. ये शत प्रतिशत गारंटी सरकार जिसकी मज़बूत छाती पर नियम-कायदे-कानून का शिकंजा कसकर देती हैं उस निरीह..निर्बल..नियम पालक..नागरिक और सुविधाओं से वंचित वर्ग को हमारा विशाल लोकतंत्र मध्यम वर्ग के नाम से जानता हैं

!! हमारी सरकार मध्यम वर्ग को अपने हर उस फरमान के हुक्म के गुलाम के तौर पर जानती हैं,, जो अपना पिचका पेट हुक्मरानों को नहीं दिखा सकता..जो आजीवन गृहस्थी की चक्की में पिसकर सरकार का वो आटा तैयार करता है जिससे निम्न और उच्च आयवर्ग का पेट भर सकें.. जो अपनी सयानी होती बेटी के ब्याह की खातिर साहूकारी ब्याज के बोझ तले दबा होता है.. जो आजीवन किराए के मकानों से निजी आशियाने का ख्वाब देखते दुनिया छोड़ देता है.. जो सरकारी टैक्स और तमाम बिल अपनी अनिवार्य ज़रूरतों का गला घोंटकर भी सबसे पहले भरता है.. जो घर से लेकर बाहर तक सरकारी लगान भरने की चलित एटीएम बनाकर छोड़ी गई ग़रीब की वो लुगाई हैं जिसे पूरा गांव (सरकारी भृष्ट नुमाइंदे) बड़ी शान से भौजाई कहता हैं.. जो छोटी सी ग़लती पर भी बड़ी सज़ा का हक़दार बना दिया गया हैं.. जो सरकार के खजाने को हर उस नियम से भरता है जिसकी आय से सरकार ग़रीब निम्न आयवर्ग और अपने पालनहार उच्च आयवर्ग को सुविधा संपन्न बनाती है.. जो सरकार की झोली भरने के बाद भी अपने हिस्से की सड़क.. बिजली.. पानी.. शिक्षा..स्वास्थ्य.. जन्म..मृत्यु.. रोज़गार की मांग नहीं कर सकता..क्योंकि वो लोकतांत्रिक ढांचे के बीच का वो बंदर है.. जो खुद मदारी भी हैं.. और तमाशाई भी.
.जो हर सरकारी नियम की वसूली की सूली पर लटकाया जाता हैं.. जो एक आह!! भरने मात्र से बदनाम हो जाता हैं.. जिसकी आंखों के सामने कत्ल करने वाले का चर्चा तक नहीं होता.. क्योंकि गुनाहगार को निर्णायक का लोकतांत्रिक दर्जा हासिल है.. मध्यम वर्ग लोकतंत्र की आत्मा में बसी ऐसी जमात हैं जिसका..पेट..पीठ..छाती और समूचा वज़ूद निजी सरोकारों से तलाक़ लेकर ही पैदा होता हैं.. और मर जाता हैं.. लेकिन उसकी आत्मा कभी नहीं मरती वो तो अजर-अमर-अविनाशी हैं….!!!!!! लोकतंत्र के ऐसे पालनहार मध्यमवर्ग को शत-शत प्रणाम और उसके शोषण पर अपने महल खड़े करने वाली सरकार और उसके मध्यमा चूसक साथियों को कोरोना से भरी हज़ारों हज़ार लानतें !

आपका पैरोकार
एक अदना कलमकार
टी.एन.मनीष

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Post Author: Javed Khan

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