देश दुनिया–)रैली ,राहुल और पश्चिम बंगाल के चुनाव की सियासत की कहानी…

*(देश दुनिया–)रैली ,राहुल और पश्चिम बंगाल के

चुनाव की सियासत की कहानी…

मैंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को न कभी पप्पू कहा और न माना ,लेकिन आज भक्तों की खुशी के लिए राहुल गांधी को पप्पू कहने में मुझे खुशी हो रही है क्योंकि राहुल ने बंगाल का मोह छोड़ देश में कोरोना के आक्रामक प्रसार को देखते हुए बंगाल में अपनी सभी चुनावी रैलियां न करने का फैसला किया है .राहुल की रेलों से बंगाल में कोरोना के प्रसार पर रोक लगे या न लगे लेकिन कम से कम सियासत में नैतिकता के नए तकाजे तो अंकुरित होंगे ही .

देश के सभी नेता जनसेवक कम रैलीबाज ज्यादा हैं. मै अराजनीतिक आदमी हूँ,किसी भी दल का सदस्य नहीं हूँ औरन किसी नेता का भक्त .मुझे राहुल गांधी को लेकर भी अनेक शिकायतें हैं और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और दुसरे नेताओं से तो हैं ही .मेरी शिकायतें मेरी अपनी कम आम जनता की ज्यादा हैं. मै पांच राज्यों के चुनावों के अलावा भी देश में धड़ाधड़ चुनावी रैलियों का लगातार विरोध करता रहा हूँ. ये रैलियां आम आअदमी को कुछ नहीं देतीं.

रैलियों पर होने वाला खर्च धन की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है,खासकर कोरोना के मौजूदा युग में .लेकिन मेरी बात न कोई मानता है और न आगे मानेगा .
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को चल रहे पांच राज्यों की विधानसभा के चुनावों में क्या मिलेगा और क्या नहीं .ये जगत जानता है ?खासतौर पर बंगाल में कांग्रेस के लिए न खोने के लिए कुछ है और न पाने के लिए ,फिर भी राहुल ने हिम्मत दिखाई और अपनी चुनावी रैलियों को विराम दे दिया किन्तु कुम्भ का समापन करने के लिए ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री जी और उनकी फ़ौज रेलों को बंद करने के लिए राजी नहीं हैं .उनकी बला से राज्य में कोरोना फैले तो खूब फ़ैल जाये .बंगाल के बारे में वे 2 मई के बाद ही सोचेंगे .

नेताओं की जन्मकुंडली पर लगातार काम करने वालों की सूचनाओं पर यदि भारत का आम नागरिक भरोसा कर ले तो उसे समझ आ जाएगा की उसने प्रचंड बहुमत से जिन लोगों को चुनकर सत्ता में भेजा है वे कितना सरकारी काम करते हैं और कितनी रैलियां ?आंकड़े बताते हैं की हमारे नेता या तो विदेश यात्राएं करते हैं या फिर चुनावी रैलियां .उनके पास जन सेवा के लिए समय होता ही नहीं है .जन सेवा नेताओं के लिए पार्टटाइम काम है .आइये अब आपको नेताओं की चुनावी और गैर चुनावी रैलियों के बारे में बता ही देते हैं .

देश के प्रथम सेवक ,फकीर,चौकीदार और न जाने क्या -क्या अर्थात प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जहां 16 मई तक देश में 143 चुनावी रैलियां की हैं वहीं, अकेले पश्चिम बंगाल में उन्होंने 17 रैलियां की हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी पश्चिम बंगाल में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं. अमित शाह भी पश्चिम बंगाल में 17 रैलियां कर चुके हैं.इस अखंड मेहनती के लिए इन नेताओं को भारतरत्न सम्मान मिलना ही चाहिए .

लगातार गर्त में जा रही कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी रैलियां करने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन मोदी जी का मुकाबला करने के मामले में वे बहुत पीछे रह गए .कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश में 126 रैलियां की है. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तुलना में उन्होंने मात्र तीन रैली पश्चिम बंगाल में की है. राहुल गांधी इस चुनाव में अब तक 8 रोड शो कर चुके हैं जबकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 20 रोड शो कर चुके हैं. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार के चुनाव में अब तक सिर्फ 2 रोड शो किया है.आपको याद ही होगा कि 19 मई को देश में सातवें और आखिरी चरण का चुनाव है. इस दिन 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. पश्चिम बंगाल में इस दिन नौ सीटों पर मतदान होगा. वोटों की गिनती 23 मई को होगी.

रैली प्रिय नेताओं के भरोसे देश कोरोना की दूसरी लहर से भी निबट रहा है. हमारे नेता बीच-बीच में चुनावी रैलियां छोड़कर राजकाज के लिए कभी बांग्लादेश हो आते हैं तो कभी छत्तीसगढ़ .कभी-कभी मुख्यमंत्रियों और स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ वर्चुअल बैठकें भी कर लेते हैं ,इसलिए आप ये नहीं कह सकते कि वे जनसेवा के प्रति जिम्मेदार नहीं है .फिर भी अगर आप नेताओं को कोसते हैं तो ये आपकी गलती है .जैसे नेता हमारे देश में हैं वैसे नेता तो आपको पूरी दुनिया में नहीं मिलेंगे भले ही आप चिराग लेकर घूम आइये .

हमारी चुनाव प्रणाली नेताओं को रैली वीर बनाने में बड़ी सहायक है. आज के अत्याधुनिक तकनीकी युग में भी हमारे नेता बिना मजमा लगाए जनता को अपनी बात समझा ही नहीं पाते .जन-जन को आधार कार्ड के जरिए सरकारी योजनाओं से जोड़ने वाली सर्कार जनता को सियासत से नहीं जोड़ पातीक्योंकि वर्चुअली जोड़तोड़ हो नहीं पाती .जोड़तोड़ के लिए मैदान में जाना ही पड़ता है .कहीं रैलियों में भगवान के प्रतिरूप नाचने पड़ते हैं तो कहीं लाठी-पत्थर और हथगोले भी इस्तेमाल करना पड़ते हैं.ये सब वर्चुअली नहीं हो सकता .
मै अक्सर हैरान हो जाता हों अपने नेताओं के बारे में सोच-सोचकर. वे कितने महान हैं ,कितने साहसी हैं जो कोरोनाकाल में भी चुनाव प्रचार के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. अरे भाई आपकी जेड प्लस-माइनस सुरक्षा श्रेणियां तो आपको पत्थर,गोली से बचा सकती हैं कोरोना से नहीं .अब देखिये न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों और कुम्भ ने कितने विद्वान और तंदुरुस्त नेतों को कोरोना का शिकार बना दिया .उन्हें भी झक मरकर ,[माफ़ कीजिए \मजबूरन घर बैठकर वर्चुअली सकारी काम करना पड़ रहा है .

चूंकि मोदी जी हमारे पास हैं.बकौल मप्र के मुख्यमंत्री जी मोदी जी भगवान का अवतार हैं इसलिए वे जो वरदान दें हमारे लिए फलदायी हो सकता है .हम कामना करते हैं कि अगले आम चुनाव में देश में होने वाली चुनावी रेलों और सभाओं तथा रोड शो तक को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.सारा चुनाव प्रचार टीवी तथा अन्य माध्यमों के जरिये होगा जो अपेक्षाकृत कम खर्चीले होंगे .सभी राजनीतिक दलों को इस विषय पर चिंतन करना चाहिए .लोकतंत्र की रक्षा और नेताओं का रैली प्रेम प्रतिबंधित होना चाहिए .देश अबकी ऐसा प्रधानमंत्री चुने जो किसी दल का स्टार प्रचारक न हो और यदि हो भी तो बाकायदा अपने दफ्तर से बराबर अवकाश लेकर चुनावी सभाओं में भाग ले . सरकारी खर्ची पर चुनाव लड़ना लोकतंत्र में सबसे बड़ी अनैतिकता और पाप है …

@ राकेश अचल

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Post Author: Javed Khan

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