अदभुत///..रागायन की सभा मे सुरों से गणेश आराधना..
ग्वालियर। शहर की प्रतिष्ठित सांगीतिक संस्था रागायन की मासिक संगीत सभा में आज सुरों के मुख्तलिफ रंग देखने को मिले। गणेशोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित इस सभा मे कलाकारों ने सुरों से गणेश जी की आराधना की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संत कृपाल सिंह जी महाराज एवं अध्यक्षता कर रहे रागायन के अध्यक्ष श्री गंगादास जी की बड़ी शाला के महंत पूरण वैराठी स्वामी रामसेवकदास जी महाराज ने सरस्वती एवं गुरु पूजन कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया। इस अवसर पर रागायन के सचिव पंडित रामबाबू कटारे, वरिष्ठ संगीत साधक पंडित उमेश कंपूवाले, ऊधम सिंह विशेष रूप से उपस्थित थे।
सभा का आगाज़ नवोदित कलाकार आभास सक्सेना के गायन से हुआ। उन्होंने राग यमन से अपने गायन की शुरुआत की। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे – मेरो मन बांध..” जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे – सखि ऐ री आली पिया बिन” । आभास ने दोनों ही बंदिशों को सहजता के साथ पूरे कौशल से गाया। राग के विस्तार के साथ तानों की अदायगी काफी अच्छी रही। गायन का समापन उन्होंने मलूकदास जी के भजन – “-सांवरिया म्हारी अरज सुनो ” से किया। आभास के साथ तबले पर उनके पिता और वरिष्ठ तबला नवाज डॉ मुकेश सक्सेना ने एवं हारमोनियम पर पंडित महेशदत्त पांडे ने मिठास भरी संगत का प्रदर्शन किया।
सभा की अगली प्रस्तुति में ग्वालियर के वरिष्ठ कलाकार श्रीकांत कुलकर्णी का बांसुरी वादन हुआ। कुलकर्णी जी ने राग दुर्गा में अपना वादन पेश किया। इस राग में उन्होंने तीन रचनाएं बजाईं। विलंबित रचना रूपक ताल में थी जबकि मध्यलय की रचना अद्धा तीन ताल में और द्रुत रचना तीन ताल में थी। तीनों ही रचनाओं को आपने पूरे मनोयोग से रागदारी की बारीकियों के साथ पेश किया। आपके साथ पुत्र श्रेयष ने बांसुरी पर साथ दिया । तबले पर श्री संजय राठौर ने बेहतरीन संगत का मुजाहिरा पेश किया।
सभा का समापन डॉ पारुल दीक्षित उपाध्याय के ख़याल गायन से हुआ । पारुल जी बनारस घराने से ताल्लुक रखती हैं। वर्तमान में वे राजा मान सिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में गायन विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर संगीत की तालीम दे रहीं हैं। बहरहाल उन्होंने राग वागेश्री से गायन का आरंभ किया। सुंदर आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में तीन गतें पेश की। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे- कवनि गति भई..। जबकि मध्यलय तीन ताल में बंदिश के बोल थे- जो हमने तुमसे बात कही। आपने द्रुत एक ताल में भी एक बंदिश पेश की। जिसके बोल थे – जमुना जल भरन नाहीं देत” । तीनों ही बंदिशों को आपने पूर्ण मनोयोग से गाया। राग के विस्तार में सुर खिलते चले गए। उसके पश्चात तानों की प्रस्तुति भी लाजवाब रही। गायन का समापन आपने मीराबाई के भजन – प्रभु मैं आई शरण तिहारी से किया। आपके साथ हारमोनियम पर विवेक जैन एवं तबले पर पांडुरंग तैलंग ने साथ दिया।
सभा के अंत में उज्जैन के युवा गायक योगेश देवले एवं नरसिंहगढ़ संगीत महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती कामलप्रभा कोटिया के निधन पर मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी गई।