शहर भर में पीले दूषित पानी की सप्लाई पर हाइकोर्ट सख्त

ग्वालियर । ग्वालियर और ग्वालियर महानगर के निवासी इन दिनों पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। ग्वालियर नगर निगम का प्रशासन महानगर वासियों को शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है। जनता सड़कों पर उतर आई है। हालांकि जनप्रतिनिधि और नगर निगम अमले के अफसर भी जनता और जनप्रतिनिधियों के दबाव में गली मोहल्लों में जाकर पानी की समस्या को देख तो रहे हैं। लेकिन उसका स्थाई निदान नहीं निकल पा रहा है। यही वजह है कि हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ को भी इस संवेदनशील मुद्दे पर दखल देना पड़ा है।एक जनहित याचिका पर बाकायदा जिला प्रशासन के अधिकारियों सहित हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार के विभाग सेंट्रल पब्लिक हेल्थ एंड एनवायरमेंट इंजीनियरिंगआर्गेनाईजेशन को पार्टी बनाए जाने के निर्देश दिए हैं।

ग्वालियर महानगर की 60 फीसदी आबादी को इस समय गंदा पानी मिल रहा है। उन्हें पीने के शुद्ध पानी की जगह पीला और अशुद्ध पानी मिल रहा है, नगर निगम और जिला प्रशासन के अधिकारी अपनी बात को सही साबित करने के लिए पीले पानी को अशुद्ध ना मानते हुए पीने योग्य बता रहे हैं। जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दो-दो, तीन-तीन बार पानी के अलग-अलग मोहल्लों से लिए गए सैंपल की जांच करवा चुका है। जिसमें पानी की शुद्धता के साथ साथ उसमें जो मिनरल्स होना चाहिए उसकी कमी पाई गई है। लेकिन नगर निगम के अफसर और जिला प्रशासन के अधिकारी इन रिपोर्ट्स को भी अपनी कमियां छुपाने के कारण नजरअंदाज कर रहे हैं और अपने खुद के नए तर्क दे रहे हैं।

शुद्ध पेयजल और पीने योग्य पानी को पिलाने की जिम्मेदारी जिला और नगर निगम प्रशासन की बनती है। लेकिन यह दोनों ही अमले अपनी जिम्मेदारी को सही से नहीं निभा पा रहे हैं तो क्या पक्ष और क्या विपक्ष सभी दल के लोग पानी को लेकर हाय तौबा मचा हुए हैं। ग्वालियर में कम्युनिस्ट पार्टी ने तो बाकायदा गंदे पानी की समस्या को लेकर एक जल कावड़ यात्रा निकाल दी तो सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक प्रवीण पाठक भी अपने ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में पानी के संकट और गंदे पानी की समस्या को लेकर नगर निगम कमिश्नर से खुद शिकायत करने पहुंच गए, आखिर जनता के बीच उन्हें अपनी साख जो बचानी है।

ग्वालियर महानगर में गंदे पानी की आपूर्ति और पीले पानी की सप्लाई को लेकर हमने हर एक जिम्मेदार अधिकारी से बात करने की कोशिश की। इस बारे में ग्वालियर के महापौर विवेक नारायण शेजवलकर जो हाल ही में लोकसभा चुनाव में सांसद भी चुने जा चुके हैं। जब उनसे समस्या के निदान के लिए पूछा गया तो उन्होंने ट्रीटमेंट प्लांट, वाटर फिल्ट्रेशन प्लांट के कार्यों की उपलब्धियां गिनाने लगे। साथ ही उन्होंने कहा कि हम अमृत योजना के तहत ग्वालियर में पीने के पानी की समस्या का स्थाई रूप से किया जा रहा है।

आपको बता दें लोकसभा चुनाव की सियासी चकल्लस के बाद अब कमलनाथ सरकार के मंत्री ग्राउंड जीरो पर लोगों के पास पहुंचना शुरू हो गए हैं। इसी कड़ी में कैबिनेट मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ग्वालियर में पानी की समस्या को लेकर महलगांव के मरीमाता क्षेत्र में पहुंचे। जहां उन्होंने गंदे पानी और पीली पानी की समस्या को लेकर घर-घर जाकर दस्तक दी। साथ ही गंदे पानी के सैंपल भी लोगों से कलेक्ट किए। इसके साथ ही मंत्री प्रद्युम्न सिंह को लोगों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने निगम और पीएचई के अफसरों की जमकर लताड़ लगाई। वहीं मंत्री के आदेश पर वार्ड 32 के एक पीएचई के सहायक यंत्री को सस्पेंड भी कर दिया। वही मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने पूरे इलाके में है व्याप्त समस्याओं का निरीक्षण किया है आपको बता दें ग्वालियर में बीते 2 महीने से गंदा पानी व पीले पानी की शिकायत आ रही है। जिसको लेकर कलेक्टर ने शहर के अलग-अलग पॉइंट से पीने के पानी के सैंपल कलेक्ट करवाएं थे। जिसकी प्रदूषण विभाग ने जांच की। बहरहाल मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर का पानी की समस्या को लेकर यह दूसरा निरीक्षण है।

इसी के साथ जब गंदे पानी की समस्या के मामले में जब पानी सर से गुज़र गया तो ग्वालियर में गंदे पानी की सप्लाई का मामला अब हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। जिसके बाद कोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन, ग्वालियर नगर निगम कमिश्नर और कलेक्टर को नोटिस जारी किया है। साथ ही जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता को आदेशित किया है कि वह केंद्र सरकार के CPHEEO विभाग यानि की सेंट्रल पब्लिक हेल्थ एंड एनवायरमेंट इंजीनिरिंग ऑर्गेंशन को पार्टी बनाएं। दरअसल ग्वालियर शहर में बीते एक महीने से 60 फीसदी आबादी को गंदा पानी औऱ पीले पानी की सप्लाई की जा रही है। जिस पर निगम का तर्क है कि वह गंदा पानी नहीं है, बल्कि वह पानी के प्लांट में टेक्निकल फॉल्ट होने के कारण पीला पानी आ रहा है। जबकि इसी मामले में कलेक्टर ने शहर के अलग-अलग स्थानों से पानी के सेंपल कलेक्ट करवाएं है। साथ ही प्रदूषण विभाग से जांच करवाई थी, जिसमें पीला पानी पीने योग्य नहीं निकाला है। अब इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 3 जून को होगी।

अधिकारी चाहे नगर निगम के हो या जिला प्रशासन के वे लाख दावे कर रहे हैं कि ग्वालियर महानगर के लोगों को शुद्ध और पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इस समस्या का निदान पिछले 2 महीने से अभी तक जिला प्रशासन के जिम्मेदार नुमाइंदे नहीं कर सके हैं। जिससे आम जनता में गुस्सा है।

ग्वालियर की गरीब 29 लाख की आबादी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी ग्वालियर के चुने गए जनप्रतिनिधि और सरकार द्वारा द्वारा बिठाए गए गए अफसरों की बनती है। लेकिन अगर वह करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद में जनता को पीने का शुद्ध जल भी उपलब्ध नहीं करा पाए। तो किस काम की कल्याणकारी सरकार और किस तरह के जनप्रतिनिधि, अगर समस्या का स्थाई और ईमानदारी पूर्वक हल नहीं निकाला गया, तो यही माना जाएगा की सब के सब अपनी राजनीति करने में लगे हैं, अगर अफसरों की बात करें तो वे पेयजल उपलब्ध कराने के नाम पर आए सरकारी धन को ठिकाने लगाते हुए अपनी जेब भरने में लगे हैं।

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Post Author: Javed Khan

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