मजदूर दिवस विशेष..
दुनिया की सुनहरी तामीर लिखने वालों का सब “डाउन” ही “डाउन” कुछ भी “अप” नहीं
ग्वालियर- दुनिया की सुनहरी तामीर लिखने वाले मजदूर अगर खुद अपने बारे में सोचें तो शायद उन्हें हर रोज एक नई निराशा और अवसाद का सामना करना पड़ेगा ..लेकिन मजदूर का दिल शायद पत्थर का होता है.. इसीलिए वह हर सुबह एक नई रोशनी की किरण ढूंढता है.. और अपना पूरा दिन उसी आस में गुजार देता है कि कभी तो अच्छी सुबह होगी …जी हां मजदूर दिवस यानी कि अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर हम ग्वालियर के उन मेहनतकशों और फुटपाथ पर बैठकर अपनी रोजी रोटी कमाने वाले मजदूरों की जिंदगी में झांकने की एक छोटी सी कोशिश कर रहे हैं ..
..ये है ग्वालियर का झांसी रोड का इलाका.. इसके पास में ही हैं, एक कलाकारों के रिहर्सल यानी कि उनके अभ्यास का स्थल कला समूह.. इसी फुटपाथ के सहारे ये खानाबदोश मजदूर अपने टीन टप्पर नुमा आशियाने और झोपड़ी बनाकर पिछले 14 बरस से यही रह रहे हैं.. गुजारे के लिए कहीं पेपर मेशी के कुछ ड्राइंग रूम में सजाने वाले गिफ्ट आइटम बना लेते हैं ,,तो कहीं कुछ बाहर से मंगाए हुए चीनी मिट्टी के बर्तन और सजावट का सामान ..तो कुछ प्लास्टिक के खिलौने और बच्चों के खेलने की सामग्री भी इन्होंने अपना पेट भरने के लिए फुटपाथ पर सजा रखी है ..लेकिन लॉक डाउन में इनका पूरा गणित बिगड़ गया है ..परिवार के मुखिया बनारसी बताते हैं कि उनके पिता एवं भाइयों के 5 परिवारों के कुल 28 सदस्य यहां खुले आसमान के नीचे फुटपाथ पर गुजर-बसर कर रहे हैं ..
बातचीत-बनारसी–फुटपाथी मजदूर
–अब तो लॉक डाउन में जो दानदाता खाना दे जाते थे,, कभी राशन दे जाते थे ..वह भी बंद हो गया है ..इसी तरह बनारसी के भाई और बहू की भी यही कहानी है ..उनका कहना है कि लॉक डाउन क्या चला.. उनकी तो जैसे मदद ही बंद हो गई …समाज ने उनकी तरफ से हाथ खींच लिया और अब तो कोई ना तो खिलौने खरीदता है,न सजावट के लिए झूमर और ना ही चीनी मिट्टी का सामान ले जाता है.. कुछ कुछ लोग आते भी हैं तो सिर्फ देखकर और भाव पूछ कर आगे बढ़ जाते हैं.. ऐसे में उनका चूल्हा पिछले कई दिनों से जला ही नहीं है ..बच्चों के लिए ना दूध की जुगाड़ हो पा रही और ना बड़ों के लिए रोटी की ..
बातचीत- राजेश– फुटपाथी मजदूर
–जमुना–मजदूर..
. कहने को तो मजदूरों की दशा और दिशा दुरस्त करने के लिए केंद्र और सूबे की सरकारें तमाम योजनाएं चला रही हैं ..लेकिन कोराना वायरस के चलते लॉक डाउन में इन मजदूरों का सिर्फ डाउन ही डाउन हुआ है ..अप तो कुछ हुआ ही नहीं… बस भगवान की खुली छत के नीचे पड़े इन मजदूरों को आस है तो सिर्फ ऊपर वाले से ही.. कि उनके उनके घर का बुझा हुआ चूल्हा तो जल्दी से रोशन हो जाए ..ताकि उनके मासूम बच्चों,, बच्चियों और बड़ों के पेट की आग तो बुझ सके ..
Report-
(जावेद खान)