ग्वालियर। हाईकोर्ट ने फसल चोरी के दो मामलों में दो साल बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं होने पर अप्रसन्नता जताते हुए शासन पर दस हजार रूपए का हर्जाना लगाया है। हाईकोर्ट ने एसपी को आदेश दिया है कि वे यह राशि 30 दिन में जमा कराएं। इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि क्रिमनल मेजर एक्ट, सीपीसी तथा भारत का संविधान की हिंदी में पुस्तकों के पांच सेट उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ की लायब्रेरी में दिए जाएं।
न्यायमूर्ति शील नागू ने ऐसे मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिए हैं कि वे सीआरपीसी की धारा दो सौ के तहत कानूनी कार्रवाई करें।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस के पास यदि कोई शिकायत आती है तो वह तत्काल एफआईआर दर्ज करे, यदि पुलिस ऐसा नहीं करती है और मामला न्यायालय में आता है.. तो न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे मामलों में तत्काल एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे।
हाईकोर्ट ने कहा यह प्रक्रिया गलत है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट रिपोर्ट पर रिपोर्ट ही मंगाने के आदेश करे। न्यायालय ने कहा कि 60 दिन और 90 दिन का जो प्रावधान है उसके तहत न्यायालय को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 156के आवेदनों पर अधीनस्थ न्यायालय को अधिक समय नहीं लेना है। उन्हें तत्काल कार्रवाई के निर्देश देना चाहिए। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट पुरूषोत्तम राय ने पैरवी की।
यह है मामला..
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याचिकाकर्ता ओमप्रकाश शर्मा ने वर्ष 2019 में अप्रैल में पुलिस को शिकायत की कि उसके खेत से बटाई वाले को भगाकर फसल काट ली गई है। उसका कहना था कि जिस पारिवारिक जमीन के बटवारे के बाद उसके हिस्से की जमीन पर बंटाई पर वह खेती कराता है। उसके भाईयों ने उसकी जमीन पर खडी फसल काट ली है। इस शिकायत पर पुलिस ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की तब उसने एसपी को शिकायत की, इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। नवंबर में फिर अगली फसल हुई तो इस बार भी उसके भाई ने उसकी फसल काट ली। इस बार फिर उसने पुलिस को आवेदन दिया, पुलिस ने इस बार भी उसके आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की, तब उसने अधीनस्थ न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया। न्यायालय ने इस मामले में नवंबर में स्टेटस रिपोर्ट मंगवाई, पुलिस ने स्टेटस रिपोर्ट नहीं दी। पुलिस इस मामले में समय लेती रही। समय लेते-लेते अप्रैल 2020 आ गया। तब तक कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया था, सितंबर 2020 तक मामला पहुंचा तब तक कोर्ट भी रिपोर्ट मंगाता रहा और पुलिस भी समय मांगती रही, दोनों काम चलते रहे। जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तब शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की और कहा कि एक एफआईआर कराने के लिए उसके द्वारा दो साल से लगातार प्रयास किया जा रहा है, अधीनस्थ न्यायालय में भी मामला प्रस्तुत किया लेकिन अब तक एफआईआर नहीं हो सकी है। इस उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय के कार्य पर अप्रसन्नता जताते हुए इस मामले में आदेश करने के निर्देश दिए थे। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट पुरूषोत्तम राय ने पैरवी की।