कठपुतली का उपयोग वैज्ञानिक सोच के साथ कर रहे युवा व बुजुर्ग …
.. भारतीय प्राचीन परंपरा और कला को जीवित रखने के लिए कई तरह के प्रयास किये जा रहे है , उन्हीं में शामिल है प्राचीन कठपुतली कला,प्राचीन समय मे सम्प्रेषण और संचार मीडिया के रूप में इस कला का बहुत उपयोग होता था ..लेकिन अब ये कला देश के कुछ ऐतिहासिक किलों और पर्यटन स्थलों पर ही दिखाई देती है ..अब विज्ञान प्रोधोगिकी के युग मे फिर से इस कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है ..इस कला के माध्यम से खेल खेल में सामाजिक कुरीतियों और महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य संबंधी भ्रांतियों को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है..
..ग्वालियर के सिटी सेन्टर क्षेत्र में इस नाटक की रिहर्सल कर रहे ये स्टूडेंट ,युवा और कुछ बुजुर्ग भी किसी सामाजिक मुद्दे पर लिखी गयी पटकथा को दोहरा रहे हैं..ये पटकथा भी इन्हीं में से कुछ ने लिखी है..उसका आधार भी वैज्ञानिक सोच वाला है.
.जिसका दारोमदार भी कठपुतली पर टिका है ..यानी पपेट्री शो,जिसे परंपरा गत मीडिया यानी फोक मीडिया की संज्ञा दी गयी है…”.सुभाष अरोरा… कार्यक्रम संयोजक””
..कठपुतली कला को जीवित रखने की कार्यशाला में शामिल प्रतिभागी और प्रशिक्षक भी अपने अपने अंदाज में इस कला के सहेजने व उसे अभिव्यक्ति देने की कोशिश में जुटे हैं… सबका मकसद बस एक ही है कि विज्ञान के माध्यम से इस प्राचीन कला को कैसे जीवित रखा जा सके..फिर चाहे छात्रा के रूप में मुस्कान हो या कठपुतली को नए अंदाज में सवांर रही ट्रेनर छाया सक्सेना…
..विज्ञान के हर रोज़ हो रहे नए नये आविष्कारों के बीच,प्राचीन कठपुतली कला को पुनर्जीवित करने के इस प्रयोग में कुछ सार्थक प्रयोग करने का प्रयास किया जा रहा है..सम्प्रेषण के इस माध्यम के माध्यम से महिलाओं व किशोरावस्था से जुड़ी बीमारियों व समस्याओं को आम जन तक पहुचाने व उनके निदान के पक्ष को भी रखा जा रहा है..बस जरूरत है इस बात की की बंद कमरे से बाहर निकलकर इस कला के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक इसका लाभ पहुँचे व सबको इसका लाभ पहुँचे…