श्रद्धांजलि–एक सितारे का अवसान..💐 इरफान…💐
तुम ही सो गये दास्तां कहते-कहते “
इरफान का हिंदी में अर्थ होता हैं.. बुद्धि,, विवेक,,जानकार..अपनी अदाकारी के बलबूते ” यथा नाम तथा काम” को जीने वाला फिल्मी दुनिया का वह सितारा आज अलविदा कह गया… जिसकी आंखें किरदार को बिना संवाद के रूपहले पर्दे पर ज़िंदा करती रहीं…इरफान तुम वास्तव में सेल्युलाईट के पर्दे के लिये ही बने थे।
मायानगरी के संघर्ष की चक्की का आटा.. अभावों में तुम्हारे भीतर के कलाकार को लगातार तराशता रहा..अंधेरों में मिले जुगनुओं को तुमनें ऐसे गले लगाया कि वो रोशनी का समंदर बनते गये.. तुम कामयाबी की अंधी दौड़ और कभी ख़तम ना होने वाली सुरंग से दूर ही रहे़..क्योंकि अभिनय तुम्हारे लिए हमेशा “मैं भीतर गया..मैं भी तर गया” का जुनूनी मंत्र ही रहा.. ये अगर व्यवसायिक होता तो तुम पानसिंह तोमर कभी न बन पाते और ना ही उसे ऐसी शिद्दत से जी पाते। हालांकि तुम्हारे फिल्मी सफ़र के हर पेज पर समीक्षक नज़रिये तुम्हें जन्मजात कलाकार दोहराते रहे हैं..जो हक़ीक़त का आईना भी कहता रहा… अब अदा और अदाकारी के अटूट संबंधों को चलाने वाली सांसों की ड़ोरी पर मौत ने अपने क्रूर हस्ताक्षर कर दिये हैं.. तो स्मृति शेष से भरे मानस पटल पर तुम्हारें सितारा जड़ित सफ़र का चलचित्र तैरना सहज बात हैं
सफ़रनामा
शाहबजादे इरफान अली खान (इरफ़ान ख़ान, इरफान)
(जन्मः ७ जनवरी १९६७, मृत्यु: २९ अप्रैल २०२०) हिन्दी अंग्रेजी फ़िल्मों, व टेलीविजन के एक कुशलअभिनेता ।
द वारियर, मकबूल, हासिल, द नेमसेक, रोग जैसी फिल्मों मे अपने अभिनय का लोहा मनवाया। हासिल फिल्म के लिये उन्हे वर्ष २००४ का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वह बालीवुड की ३० से ज्यादा फिल्मों मे अभिनय कर चुके हैं। इरफान हॉलीवुड मे भी एक जाना पहचाना नाम हैं। वह ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर और द अमेजिंग स्पाइडर मैन फिल्मों मे भी काम कर चुके हैं। 2011 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया। 60 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया। इन्होने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त किया है। २३ फ़रवरी १९९५ को इरफान ने सुतपा सिकदर से शादी की। सुतपा भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से सम्बन्ध रखती हैं।
इरफ़ान अब अपनी नई दुनिया में बस !! यहीं कह रहे होंगे कि सफ़र तो लंबा था पर ” ये साली ज़िंदगी ” जीने भी नहीं देती।
ब कलम..
टी.एन.मनीष
वरिष्ठ पत्रकार