रागायन की सभा में झिलमिलाए सुरों के दीप..
ग्वालियर। शहर की प्रतिष्ठित सांगीतिक संस्था रागायन की यहां लक्ष्मीबाई कॉलोनी स्थित सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की बड़ी शाला में रविवार को हुई मासिक संगीत सभा में सुरों के दीप खूब झिलमिलाए। दीपावली और देवोत्थान एकादशी के उपलक्ष्य में आयोजित इस सभा में नवोदित कलाकारों से लेकर वरिष्ठ कलाकारों ने सभा में एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां देकर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
रागायन के अध्यक्ष एवं सिद्धपीठ श्रीगंगादास जी की बड़ी शाला के महंत स्वामी रामसेवकदास जी महाराज के सानिध्य में सभी कलाकारों ने माँ सरस्वती एवं गुरु पूजन कर सभा का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर शहर के वरिष्ठ समाजसेवी महेश मुदगल , वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल वरिष्ठ तबला वादक डॉ मुकेश सक्सेना, श्री शरद बक्षी,एवं रागायन के सचिव प रामबाबू कटारे विशेष रूप से उपस्थित थे।
सभा की पहली प्रस्तुति में ग्वालियर के नवोदित गायक और रोहन पंडित का गायन हुआ। रोहन ने राग मधुवंती में अपना गायन प्रस्तुत किया। संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में तीन बंदिशें पेश की। एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे -” हे करुणा निधान..”। आपने तीनताल में निबद्ध मध्यलय की बंदिश भी पेश की, बोल थे- ” उन सो मोरी लगन लगी” जबकि एक ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे- ” ठुमक ठुमक चलत चाल” । तीनों ही बंदिशों को गाने में रोहन ने अपने कौशल का बखूबी परिचय दिया। रागदारी का खयाल रखते हुए उन्होंने राग की बढ़त बड़े ही सधे हुए अंदाज़ में की।और फिर तानों की भी बेहतरीन प्रस्तुति दी। गायन का समापन उन्होंने किरवानी में ठुमरी “तोरे बिना चैन नहीं” से किया। उनके साथ तबले पर मनोज मिश्रा एवं हारमोनियम पर संजय देवले ने संगत की।
सभा की दूसरी प्रस्तुति में ग्वालियर के ही युवा कलाकार अंकुर धारकर का सुमधुर वायलिन वादन हुआ। अंकुर ने अपने वादन में राग गावती पेश किया। इस राग में उन्होंने तीन गतें पेश कीं। विलंबित ,मध्य और द्रुत तीनों ही लय की गतें तीनताल में निबद्ध थीं। तीनों गतों को बजाने में अंकुर ने खूब कमाल दिखाया। विलंबित गत में राग की बढ़त का अंदाज़ श्रवणीय था। उनके वादन में गायकी अंग पूरी सिद्दत से उभरता है। उनके साथ तबले पर डॉ विनय विन्दे ने बेहतरीन संगत का प्रदर्शन किया।
सभा का समापन ग्वालियर की वरिष्ठ संगीत साधिका डॉ वीणा जोशी के खयाल गायन से हुआ। उन्होंने राग श्याम कल्याण में अपने गायन की प्रस्तुति दी। सुंदर आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश की। एकताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे- “मानत न जिया”
जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल थे – मोरे मंदिरवा आये री। दोनों ही बंदिशों को वीणा जी ने पूरी तन्मयता से गाया। विलंबित बंदिश को गाते हुए उन्होंने जिस तरह राग का विस्तार किया उससे उसका रंग निखरता गया। फिर तानों की पेशकश भी खूब भाई। गायन का समापन उन्होंने एक भजन- “राम का गुणगान करिए “से किया। उनके साथ तबले पर डॉ विनय विन्दे और हारमोनियम पर महेशदत्त पांडेय ने संगत की। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल, विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन रागायन के सचिव पंडित रामबाबू कटारे ने किया।
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